दास्तां-ए-ऋषिकेश

Gauri Shankar

कैन्डी क्रश में थोड़ा व्यस्त होने के कारण मैं पढ़ नहीं पाया पर जरूर किसी न किसी धार्मिक पुस्तक में इस बात का उल्लेख होगा कि आदमी का बच्चा पाँच साल तक बंदर होता है। किसी ट्रिप पर होटल के कमरे में घुसते ही माँ ततैये काटे व्यक्ति की तेजी से इक्स्टेन्शन फ़ोन का तार निकालती है, बाप लपक कर पानी का जग अलमारी में रखता है, पर इतने में बच्चा मेन्यू बेड के नीचे, ठीक बीच में ऐसे फेंक देता है कि बाएं गाल पर धूल लगा निराश बाप अपने स्थूल शरीर को ज़मीन से उठाते हुए पत्नी से रिसेप्शन पर फोन लगा कर दूसरा मेन्यू मंगाने के लिए कहता है।

आपकी लुगाई, सासू माँ को मन ही मन प्रणाम करके तार लगाती है, फोन मिलाती है, पराए मर्दों से माफ़ियाँ मांगती है, स्थिति समझा कर दूसरा मेन्यू मंगाती है और दरवाज़ा खोलने जाती है। पर जल्दी में वह फोन का तार हटाना भूल जाती है और इतने में बच्चा रिसेप्शन पर फोन कर वह गाली सुना देता है जो आपने चार महीने पहले उसे एक दिन गुस्से में आकर दी थी जब उसने आपके खुले मुहँ के भीतर थूक दिया था। इस बार माफी मांगने की बारी जैविक बाप की है। वह वापिस रिसेप्शन पर फोन करता है और…

आपकी शानदार ट्रिप के यह पहले पाँच मिनट हैं। महीने भर से रिसर्च कर रहे थे? चालीस हज़ार का खर्चा? मजा आ रहा है?

ऋषिकेश के उमस और गर्मी भरे मौसम में हमने तीन रातें बिताई। हाँ पहले से पता था मौसम ठीक नहीं। पता था कि भीड़ है। पर जैसे एक उम्र बीत जाने के बाद आदमी को किसी दूसरे की पत्नी को जानने और समझने की जरूरत पैदा होती है, ठीक उसी तरह ऑफिस के यस सर, नो मैडम, की लंबी श्रृंखला के पश्चात एक कॉर्पोरेट एम्प्लोयी गर्दन में पट्टे से हुए घाव पर मरहम लगाने के लिए पहाड़ों और नदियों की तरफ निहारता है। गाहे-बगाहे अपने कंधे उचकाकर, उन पर लादा हुआ बोझ फेंक कर, सर उठा कर नीले आसमान को देखना, इंसान को खुद एक इंसान की तरह महसूस करने के लिए बहुत जरूरी होता है। होटल में पैसे ले कर ही सही, कोई तो हो जो आपको इज्जत बख्शे, आपके नाज़ नखरे उठाए, आपकी तरफ मुसकुरा कर देखे। कुछ दशक प्रयास करने के बाद औरतों से तो मैंने यह उम्मीद छोड़ दी, आजकल मूँछों वाली मुस्कान से दिल खुश करता हूँ।

गुलज़ार साहब ने राखी को छोड़ने के बाद फरमाया है-

“कभी तो चौंक के देखे कोई हमारी तरफ़
किसी की आँख में हम को भी इंतिज़ार दिखे।”

इस यात्रा में हमने सौ रुपए की एक कप चाय पी। बच्चे के एक ग्लास दूध के लिए डेढ़ सौ रुपए दिए। किसान इतने अच्छे से फसल नहीं काटता, जितनी अच्छी तरह से घर से बाहर निकलते ही लोग आपका काटते हैं। सड़क पर हर आदमी आपके शिकार में हैं। नाई दुकान के बाहर खड़ा आपके बढ़े हुए बाल देखता है, मोची जूतों पर जमी धूल देखता है, मिठाई वाला आपका बढ़ा हुआ पेट देखता है। हम सब बकरे हैं, हर दिन बकरीद है। ऋषिकेश में होटल Vilana का व्यू तो कुछ खास नहीं, पर उसका खाना, कमरा और सर्विस लाजवाब है। रिसेप्शन पर बैठे लोग आपको देख कर मुस्कुरा के खड़े हो जाते हैं। फटी आँखों और खुले मुहँ वाले बच्चों को देख कर भी हैलो करते हैं। मुझे लगता है अगर मैं उस होटल से वर्क फ्रॉम रूम टाइप करूँ तो मेरा Excel-ppt का भी आधा काम कर देंगे। इस होटल से त्रिवेणी घाट का दस मिनट का पैदल का रास्ता है।

हम वहाँ गए और थोड़ी देर तक पहली सीढ़ी पर गंगा जी के ठंडे पानी में टहले। बारिश के गंदे पानी से गंगा जी उफान पर हैं। उस समय पाँच बजे थे और आरती सात बजे से शुरू होनी थी। गर्मी और उमस से परेशान हम कन्फ्यूज़ थे कि आरती के लिए इतना इंतज़ार कैसे करेंगे। तभी वहाँ एक देवदूत आए और उन्होंने हमारी चिंता दूर कर दी। हरियाणा के वह सज्जन अधोवस्त्र में अपने खूबसूरत जिस्म की नुमाइश करके टांगे चौड़ी करके हमारे सामने पानी में कुछ यूँ पसर गए कि साठ साल की महिलाओं ने भी उनके तेज और ताप के कारण अपनी आँखों पर पर्दा कर लिया। उनकी इस बाल-सुलभ सरलता से प्रभावित होकर हमने भी होटल का सरल रास्ता पकड़ लिया।

त्रिवेणी घाट की आरती छोड़ने के बाद हमने अगले दिन परमार्थ आश्रम की आरती अटेन्ड करने का प्लान बनाया। वहाँ आरती से डेढ़ घंटे पहले पहुँचने के बाद भी इतनी भीड़ थी, कि हमने दूर से ही नमस्ते की और गंगा जी में पैर डाल कर बैठे रहे। पूजा अर्चना आदमी मानसिक शांति के लिए करता है, वह भी एक टांग पर खड़े हो कर, तीन लोगों के कंधे दबा कर, मुझे नहीं करनी।

इंस्टाग्राम पर लक्ष्मण झूले के पास किसी फ्री स्पिरिट कैफै की बड़ी रील आती हैं। इस्राइली गा रहे हैं, अमेरिकन नाच रहे हैं, मारवाड़ी सूद पर पैसे दे रहे हैं, मैंने कहा वहीं चलते हैं। गूगल मैप ने धोका दिया, हम आधे घंटे बच्चे को कंधे पर लटकाए बिक्रम बेताल खेलते रहे। बीवी आती जाती किसी तेज गाड़ी के नीचे जान देने को तैयार थी, मैं जन्म देने के लिए अपने माँ बाप को कोस रहा था, कि फ्री स्पिरिट कैफै मिल गया। दो मंजिल ऊपर चढ़े। फेफड़े टॉन्सिल्स से टकरा कर वापिस नीचे आए। एक पच्चीस साल के लड़के के कहने पर जूते भी उतारे, अंदर कैफै में गए तो बस वही लड़का और हम। वह हमें देखे और हम उसे। कुछ सेकंड बाद बीवी मुझे देखे। मैं नीचे कूदने के लिए खिड़की देखूँ। बच्चा तोड़ने के लिए ग्लास देखे। थोड़ी देर देखने दिखाने के बाद हम बैठ गए, चलने फिरने लायक रह कहाँ गए थे।

स्प्रिट तो हमारी फ्री हो चुकी थी, पर भाई के यहाँ लाइट नहीं थी। 15 लाइट जली थी, म्यूजिक सिस्टम चल रहा था, पर पंखे या कूलर का इंवर्टर कनेक्शन नहीं था। और जब लाइट नहीं थी तो वो वर्जिन लड़का ठंडा पानी कहाँ से पिलाता। पर हाँ, उसके पास मॉकटेल ठंडे थे। खिड़की के पास बैठकर हांफते हुए हमने दो सोडा लेमन टाइप कुछ कुछ पिए और उस इंस्टाग्राम धोकेबाज़ से बिल मांगा। उसने पहले एक पेन निकाला कि लोकलाज के लिए बिल बना दूँ, फिर देखा कि मोहल्ले में और कोई नहीं है तो उसने मासूमियत से हाथ फैला कर 320 रुपए मांग लिए। यहाँ तक भी सब ठीक था पर जब वापिस लौटते समय मुझे पसीने से तरबतर होकर झुकते हुए जूते के फीते बांधने पड़े तो जो मेरे मुहँ से जो गालियां निकली साहब! तुरंत मेरे बच्चे ने उन्हें दोहराकर अपने रजिस्टर में नोट कर लिया। अगली बार जब कोई मेहमान घर आएगा तो देगा। साले को अब तक लाल और नीले रंग का अंतर नहीं पता, गालियां सारी रट ली।

पूरे दो दिन होटल Vilana के ऐसी कमरे में बंद रह कर पनीर को इस तरह या उस तरह ऑरेंज ग्रैवी में खा कर हम शिवपुरी की तरफ निकले। वहाँ समिट बाइ द गंगेज़ एक मशहूर रिज़ॉर्ट है। यह रिज़ॉर्ट अच्छी लोकेशन पर है, महंगा है, अच्छा बन भी रहा था, फिर उन्हें याद आया, ओह हम तो शिवपुरी में हैं। यहाँ अच्छा होटल/रिज़ॉर्ट कैसे बना सकते हैं? फिर उन्होंने किसी मिड डे मील बनाने वाले ग्रामीण शिक्षक को रसोइया बनाया और कुछ बेपरवाह लड़कों को स्टाफ में भर्ती कर, होने वाले पाप का प्रायश्चित किया। होटल के कमरे से गंगा जी, पेड़, पहाड़ और बंदर तो दिखते हैं, पर छः-सात हज़ार रोज के लायक होटल नहीं। इस होटल के बारे में जितना कम लिखूँ उतना अच्छा है। वैसे भी कहानी लंबी हो रही है, आपको बिल्ली कुत्ते की वीडियोज़ भी देखनी होंगी। मेरी शुभकामनाएँ।
-गौरी शंकर

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