दास्तां-ए-नैनीताल

“आदमी लंगड़ा लूला पैदा हो जाए, चलेगा- साला गरीब पैदा नहीं होना चाहिए।“ कमरे का दरवाज़ा खोलते हुए अंकुर ने कहा। सौ रुपए की पर्ची जो हमने नैनीताल की इस धर्मशाला में कटवाई थी, वह उसके हाथ में कसमसा रही थी। कमरे में दो चिता-रूपी तख्त डाले हुए थे जिन पर श्मशान घाट से लाए हुए दो गद्दे और उन गद्दों पर राज्य सभा के सदस्य जितने लोगों के पौरुष-रस से सनी चादरें सुशोभित थी।
बिना कवर की दो रजाइयां, जिन्हें जरूरत पड़ने पर गद्दों की तरह इस्तेमाल किया जा सकता था, चादर पर जीवन के सबूत छिपाने की असफल कोशिश कर रही थी। खूबसूरत तकियों को भी गिलाफ से ढकने की गुस्ताखी नहीं की गई। तकियों पर सीधे सर रख कर सोएं और रात भर करवट ना बदलें, तो एड्स होने का खतरा काफी कम था। कमरे में तारों की रोशनी सा टिमटिमाता बल्ब मानो पूछ रहा था, “क्यों? किसी को कुछ देखना-दिखाना है क्या?” हम दोनों ने कमरे का फर्श देख कर अंदाज लगाया कि यहाँ कम से कम तीन गर्भपात और दो नर-बली दी गई होंगी।
कमरे से शौचालय तकरीबन तीन जानवरों की लाशों को फांद कर जाना था। इतनी ठंड से संवेदनशील अंगों को बचाने के लिए वहाँ पानी का कोई इंतजाम नहीं किया गया था। पर अगर आप फिर भी स्वच्छ भारत अभियान के तहत एक हाथ में खाली डब्बा और दूसरे हाथ से पाजामा पकड़े, अपने सर को प्रबंधक महोदय के दरवाजे की लोहे की सांकल पर पटकें तो वह आपका आधा डब्बा भर देंगे। सुबह 6 बजे से 8 बजे तक लकड़ी जला कर एक भूत जैसा आदमी पानी गर्म करेगा, बाल्टी हाथ में ले कर इंतज़ार करो और नहा कर नैनी झील पर बाबू बनकर, जेब में हाथ डालकर, ऐसे टहलो जैसे ताज में रुके हों। शाम ढल आई थी और हम अपने-अपने तख्त-ए-ताउस पर लेट गए। ठंड काफी थी तो उस पवित्र रजाई और चादर से हम ऐसे घुल मिल गए जैसे सूअर नाली में लोट लगाता है। थोड़ी देर बाद अंकुर ने कहा, “यार गौरी, समझ पाना मुश्किल है कि मेरे तकिये से पेशाब की बू आ रही है या शराब की।“ मैंने उसके मन की व्यथा जानते हुए समझाया, “हो सकता है किसी शराबी का पेशाब हो”। अंकुर ने एक लंबी सी आह भरी और मेरे वास्तविक पिता होने का दावा पेश किया।
कड़कड़ाती ठंड या फिर यात्रा के उत्साह के कारण अंकुर को नींद नहीं आ रही थी। उसने अपने तकिये पर ठुड्डी टिका कर मुझसे पूछा, “तुझे लगता है नेहा को अगर बुलाते तो वह इस ट्रिप पर साथ में आती?” मैंने एक गहरी सांस ली और कहा, “तूने दो साल में उस से एक बार बात की है जिसमें तूने उसे हैलो से पहले शादी के लिए प्रपोज किया था। उसने तुझे थप्पड़ केवल इसलिए नहीं मारा क्योंकि वह तुझे छूना नहीं चाहती थी। उसने कॉलेज के डायरेक्टर से शिकायत की थी और तू एक हफ्ते के लिए सस्पेन्ड हुआ था। इस सब में से किस बात से तुझे लगा कि वह तेरे साथ नैनीताल घूमने आती?” अंकुर चिढ़ गया और उसने मुझे पर आरोप लगाया कि मैं शायरी और साहित्य का बस ढोंग करता हूँ और मुझमें कल्पनाशीलता और संवेदनशीलता शून्य है। साथ ही साथ उसने मुझे बड़े चित्रात्मक ढंग से बताया कि अगर आज के बाद मैंने ज़िंदगी में उसे कोई शेर सुनाया तो मैं मरहूम मिर्जा ग़ालिब के किस अंग का नजदीकी से मुआयना कर सकता हूँ।
सुबह हुई तो सबसे पहले हमने झील के पास एक ढाबे में दो-दो पराँठे खाए और चाय पी। आते-जाते खूबसूरत लोगों को अंकुर ने इस तरह से देखा जैसे भगवंत मान शराब की बोतल को देखते हैं। उसकी भी गलती नहीं थी, उन दिनों इंजीनियरिंग कॉलेज में आधी लड़कियों की मूँछ हुआ करती थी। खैर, हमने नैनी झील के दो चक्कर लगाए, कपड़ों की मार्केट में टोपियाँ और मफ़लर यूँ उठा कर देखे जैसे उन्हें खरीदने के लिए हमारे पास वाकई पैसे हों।
अब ट्रिप पर आएं हैं तो अय्याशी तो करेंगे ही, कह कर हमने मिल-बाँट कर एक प्लेट मोमोज की भी खा ली। अब क्या करें? किसी शैतान के बच्चे ने हमें बताया कि यहाँ से ऊपर चाइना/नैना पीक का रास्ता जाता है, चले जाओ। मुफ़्त की कुछ भी चीज़ करने को हम तैयार थे। पर घंटे दो घंटे का वह जानलेवा ट्रैक? हम हर पाँच मिनट बाद सड़क किनारे बैठ कर हांफते, उस सलाहकार के लिए नई-नई गाली बनाते और एक दूसरे के कंधों में नाखून गड़ा कर, एक दूसरे को खींचते हुए चल पड़ते। रास्ते में एक खच्चर की पूँछ के साथ खेलने पर अंकुर को एक दुलत्ती पड़ी और उस पर बैठी मोटी औरत के गिर जाने से गालियां भी। थके हारे जब हम ऊपर पहुंचे तो कुछ कैन्टीन वाले “हिमालयाज़-हिमालयाज़” चिल्ला कर ग्राहकों को आकर्षित कर रहे थे। जिसे अंकुर ने “यहीं माल ले आज” में रूपांतरित कर पचास-सौ बार चिल्लाया। मानसिक और शारीरिक रूप से टूटा व्यक्ति और क्या करे?
शाम को टूटे फूटे हम अपने रंगमहल में पहुंचे। तालियाँ बजा कर बाँदियों को बुलाया, इत्र और गुलाब जल से हरम में स्नान किया, और फिर शयन कक्ष में लेट गए। थोड़ी देर के सन्नाटे के बाद अंकुर ने कहा, “यार गौरी, मुझे लग रहा है कि मेरे बिस्तर पर कुछ चल रहा है।“ मैंने उस से कहा कि इस कमरे में सभी सामग्री उपलब्ध है, डार्विन सिद्धांत के अनुसार जरूर कोई बच्चा बन गया होगा। मैंने अंकुर की गाली का तीस सेकंड इंतज़ार किया पर वह चुप्पी ताने पड़ा था। मैंने पूछा “ठीक हो?” उसने धीमी आवाज़ में कहा, कि उसे पक्का विश्वास है कि अब तक जो सांप उसकी रजाई में था, अब वह उसके पाजामे के अंदर है। मैंने बड़बड़ाते हुए बल्ब जलाने की कोशिश की, वह एक बार जला और इस से पहले कि उसकी रोशनी सामने वाली दीवार तक पहुँच पाती, उसने दम तोड़ दिया।
अपने नोकिया फोन की रोशनी के सहारे मैंने धीरे से अंकुर की रजाई हटाई। सारी लोक लाज त्याग कर उसके पाजामे में झाँकने की कोशिश की तो पाया कि उसके अंदर एक मासूम सी छिपकली थी। अंकुर ने धीरे से पाजामा उतारा, उसी में छिपकली को लपेट कर सामने की दीवार पर गुस्से से दे कर मारा और रजाई लपेट ली। थोड़ी देर बाद उसने मुझसे पूछा, “जैसा फिल्मों में होता है वैसे असल ज़िंदगी में क्यों नहीं होता? अमीर घरों की सुंदर लड़कियां गरीब घरों के लड़कों के जज़्बात क्यों नहीं समझती? क्यों नेहा मेरे प्यार को स्वीकार नहीं करती?” मैंने कहा, “हो सकता है कि उसके रिजेक्शन की वजह तेरी गरीबी ना होकर तेरी शक्ल हो?” अंकुर ने मुझे इतनी इनोवेटिव गालियां सुनाई जिन्हें लिख देने पर समाज से बहिष्क्रत होने का खतरा है।
खैर, अगले दिन आश्चर्यजनक रूप से हम जिंदा उठे और फिर बस-ट्रेन के सहारे गाज़ियाबाद वापिस पहुँच कर अपनी गरीबी के दिन काटने लगे…
-गौरी शंकर