Top 18+] वैशाली में घूमने की जगह | Places to Visit in Vaishali, Bihar

Sweta Patel

“वैशाली जन का प्रति पालक, गण का आदि विधाता।
जिसे ढूँढ़ता आज देश, उस प्रजातंत्र की माता ।।
रुको, एक क्षण पथिक यहाँ, मिट्टी को शीश नवाओ।
राज्य सिद्धियों की समाधि पर, फूल चढ़ाते जाओ ।।”

ये पंक्तियाँ हिंदी के जाने माने कवि रामधारी सिंह दिनकर ने वैशाली के संबंध में लिखा है। आज जिस प्रजातंत्र और लोकतंत्र की पूरी दुनिया बात करती है उसे सबसे पहले दुनिया को बिहार ने ही दिया था और वह धरती कोई और नहीं बल्कि बिहार का वैशाली गणराज्य था।

महावीर की जन्म स्थली होने के कारण जैन धर्म के मतावलम्बियों के लिए वैशाली एक पवित्र स्थल है। भगवान बुद्ध का इस धरती पर तीन बार आगमन हुआ, यह उनकी कर्म भूमि भी थी।  ऐसे में जैन, बौद्ध और हिन्दुओं के लिए वैशाली एक बेहद ही महत्वपूर्ण स्थान है।

आज हम इसी वैशाली के बारे में बात करेंगे और वर्तमान के बिहार प्रान्त के वैशाली जिले में स्थित घूमने के जगहों के बारे में चर्चा करेंगे।

वैशाली में घूमने फिरने या पर्यटन के दृष्टिकोण से कई महत्वपूर्ण व ऐतिहासिक जगहें है, लेकिन उनके बारे में जानने से पहले कुछ जरूर बातें समझ लेते है।

वैशाली में घूमने की जगह

वैशाली बिहार का एक जिला है जिसका मुख्यालय हाजीपुर है, साथ ही इस जिले में वैशाली नाम का एक जगह भी है जिसे अक्सर वैशाली गढ़ के नाम से जाना जाता।

ऐसे में हम इस लेख में पूरे वैशाली जिले के पर्यटन स्थलों के बारे में बात करेंगे। तो सबसे पहले बात करते है वैशाली जिले के अन्य हिस्सों के जगहों के बारे में फिर दूसरे चरण में वैशाली गढ़ के आसपास मौजूद स्थलों के बारे में –

1. कौनहारा घाट

कौनहारा घाट
कौनहारा घाट

गंडक नदी के तट पर बसे हाजीपुर शहर का यह घाट काफी महत्व रखता है, इसी जगह पर गंगा और गंडक का संगम होता है जहाँ  यह नदी गंगा में समाहित हो जाती है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी जगह पर भगवान विष्णु के हाथों गज-ग्राह को मुक्ति मिली थी जिसके बाद से यह भूमि महा-मुक्ति धाम बन गई।

यहां चिता की राख कभी ठंडी नहीं होती। न केवल वैशाली जिले बल्कि पड़ोसी मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर इलाके के लोग भी दाह-संस्कार के लिए यहां पहुंचते हैं।

ऐसी मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन गज (अगस्त्य मूनि से श्रापित इन्द्रमन) एवं ग्राह (देवल ऋषि से श्रापित हाहा नामक गंधर्व) के युद्ध में भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से ग्राह का वध कर गज की रक्षा की थी।

तब से धार्मिक विश्वास है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहाँ गंगा स्नान से मोक्ष प्राप्त होता है, ऐसे में प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर लाखों की संख्या में लोग इस घाट पर आकर डुबकी लगाते है।

2. नेपाली छावनी मंदिर

नेपाली छावनी मंदिर
नेपाली छावनी मंदिर

नेपाली छावनी मंदिर कोनहारा घाट के समीप ही स्थित है, यह एक नेपाली सेनाधिकारी मातबर सिंह थापा द्वारा १८ वीं सदी में पैगोडा शैली में निर्मित कराया गया था।

यह अद्वितीय मंदिर नेपाली वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है। काष्ट फलकों पर बने प्रणय दृश्य का अधिकांश भाग अब नष्टप्राय है या चोरी हो गया है। कला प्रेमियों के अलावे शिव भक्तों के बीच इस मंदिर की बड़ी प्रतिष्ठा है।

इस मंदिर में कामकला का व्यापक चित्रण भी है, मंदिर में लगे लकड़ी के खंभों पर कामकला के अलग-अलग आसनों का चित्रण है। यही कारण है कि इसे बिहार का खजुराहो कहा जाता है।

यह मंदिर बिहार सरकार द्वारा एक संरक्षित धरोहर भी है, इस मंदिर को देखने कभी दूर-दूर से पर्यटक आया करते थे लेकिन देखरेख और सरकार की उदासीनता की वजह से आज यह धरोहर नष्ट होता जा रहा है।

3. रामचौरा मंदिर

रामचौरा मंदिर
रामचौरा मंदिर

हाजीपुर में ही स्थित यह मंदिर भगवान राम को समर्पित है और लोककथाओं के अनुसार, यह रामायण काल ​​से अस्तित्व में है। मान्यता है कि जब भगवान श्रीराम यही से होते हुए जनकपुर को गए थे।

आज भी इस मंदिर में उनके पदचिन्हों की पूजा की जाती है। रामचौरा मंदिर में हर साल राम की जयंती, राम नवमी मनाने की परंपरा है और हर साल रामनवमी के मौके पर भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है।

4. पातालेश्वर मंदिर हाजीपुर

पातालेश्वर मंदिर हाजीपुर
पातालेश्वर मंदिर हाजीपुर

भगवान शिव को समर्पित हाजीपुर का पातालेश्वर मंदिर शहर के प्रसिद्ध स्थानों में से एक है। यह मंदिर जिले में शिवभक्तों की आस्था का एक महत्वपूर्ण केंद्र है।

बारहों मास यह मंदिर श्रद्धालुओं से गुलजार रहता है, खासतौर से वैवाहिक कार्यक्रमों के लिए यह मंदिर पूरे जिले में जाना जाता है। यह मंदिर हाजीपुर के स्थानीय मस्जिद चौक से चौहट्टा चौक के बीच भरत राउत कटरा मुहल्ले में स्थित है।

5. बरैला झील

Baraila Lake (बरैला झील)
Baraila Lake (बरैला झील)

साल 1997 में ‘सलीम अली जुब्बा सहनी पक्षी अभयारण’ के रूप में वैशाली के जंदाहा और पातेपुर में स्थित बरैला झील को अधिसूचित किया गया था। तब यहाँ भारी संख्या में प्रवासी पक्षियों का आगमन होता था लेकिन बिगत कुछ वर्षों में इसमें खूब गिरावट आई है।

अक्टूबर से फरवरी के अंत तक यहाँ का मौसम काफी सुहावना रहता है, इसी मौसम में प्रवासी पक्षियों का भी आगमन होता है।

पर्यटन की दृष्टि से इस जगह का विकास नहीं हो पाया है, यहाँ पहुंचने के लिए न तो दुरुस्त सड़कें है और न ही आने जाने वालों के लिए सुरक्षा और संसाधन मौजूद है।

6. गणिनाथ धाम

बाबा गणिनाथ मंदिर (पलवैया धाम), महनार
बाबा गणिनाथ मंदिर (पलवैया धाम), महनार

यह मंदिर मधेशिया वैश्य समुदाय के कुल गुरू बाबा गणिनाथ को समर्पित है, यह मंदिर संतशिरोमणि बाबा गणिनाथ की समाधि-भूमि पावन पलवैया धाम के रूप में जाना जाता है।

हर वर्ष बाबा गणिनाथ के जन्म तिथि (कृष्ण जन्माष्टमी के बाद के पहले शनिवार) के दिन उनके समुदाय के द्वारा पूजा किया जाता है एवम मेला लगता है।

ऐसी मान्यता है कि भगवान शंकर के मानस पुत्र के रूप में पृथ्वी पर अवतार के बाद बाबा गणिनाथ ने नैनाधोगिन नाम की राक्षसी का वध कर पूरी मानव जाति को निजात दिलायी।

गणिनाथ जयन्ती को मनाने आए लोग वहाँ अपने पुत्र/पुत्री के लिए योग्य पुत्रवधु/दामाद की खोज भी करते हैं। सांस्कृतिक कार्यक्रम के पश्चात् वे वापस लौटते हैं।

7. बटेश्वरनाथ मंदिर

Bateshwarnath Temple (बटेश्वरनाथ मंदिर)
Bateshwarnath Temple (बटेश्वरनाथ मंदिर)

जिले के जंदाहा प्रखंड अंतर्गत अति प्राचीन बाबा बटेश्वर नाथ का मंदिर है जहाँ लाखों श्रद्धालु हर वर्ष बटेश्वर नाथ पर जलाभिषेक करते है। बाबा बटेश्वर नाथ के बारे में कथा है कि यह बट के वृक्ष से कुछ ऊंचाई पर स्वत: निकले हुए हैं l

हजारों साल पुराने इस वटवृक्ष में विषैले सांपों का धोधर भी है, किंतु स्थानीय लोगों की मान्यता है कि इस बट वृक्ष में रहने वाले कोई भी सांप कभी किसी ग्रामीण को क्षति नहीं पहुंचाते।

हर वर्ष शिवरात्रि के मौके पर मंदिर परिसर के चारों ओर विशाल मेला का आयोजन होता है, यह मेला तेजपत्ता और लकड़ी से बनी वस्तुओं के लिए विख्यात है।

8. गोविंदपुर सिंघाड़ा शक्तिपीठ

गोविंदपुर सिंघाड़ा शक्तिपीठ (Govindpur Singhara)
गोविंदपुर सिंघाड़ा शक्तिपीठ (Govindpur Singhara)

महुआ बाजार से आठ किलोमीटर पूर्व महुआ-ताजपुर सड़क मार्ग एवं जन्दाहा मार्ग के बीचों बीच स्थित गोविंदपुर सिंघाड़ा शक्तिपीठ माता का मंदिर मनोकामना सिद्धि के रूप में चर्चित है।

नवरात्री के दौरान लाखों लोग मां के दरबार में आकर प्रतिवर्ष पूजा अर्चना करते हैं, यहां पंचमी के दिन ही मां का पट खुल जाता है।  पूजा के लिए बनायी जाने वाली मूर्ति की विशेषता है कि यहां सैकड़ों वर्षों से एक ही आकृति की जीवंत मूर्ति बनायी जाती है

यहां सदियों से पंचमी के ही दिन मां का पट खोलने व बलि देने परंपरा चली आ रही है, जो आज भी कायम है, यहां पंचमी से दशमी तक भव्य मेला का भी आयोजन होता है।

स्थानीय मान्यता है कि जो भक्त सच्चे दिल से माता के दरबार में पहुंच जो भी मांगता है, माता उसको पूर्ण करती हैं.।

9. बाबा बसावन भुइया स्थान

बाबा बसावन भुइया स्थान
बाबा बसावन भुइया स्थान

जिला मुख्यालय हाजीपुर के समीप पानापुर लंगा गांव में स्थित बाबा बसावन भुइया स्थान मंदिर बिहार के साथ साथ दूसरे प्रदेशों में भी काफी प्रचलित है।

यह मंदिर पूरे देश के पशुपालकों के लिए आस्था का प्रतीक है, यह एक ऐसा अनोखा मंदिर है जहां दुग्धाभिषेक किया जाता है, जिसके चलते मंदिर में नदियों की तरह दूध की धाराएं बहती हैं।

सालों भर यहाँ दूर दराज से लोग दूध चढ़ाने के लिए आते हैं, यही नहीं दूर दूर से आने वाले पशुपालक ढोल- झाल बजाकर कीर्तण भी करते हैं। सोमवार और शुक्रवार को यहां पर विशेष रूप से दुग्धाभिषेक किया जाता।

हर साल वसंत पंचमी और दशहरा के मौके पर मंदिर परिसर में मेले का आयोजन भी होता, तब दूध चढ़ाने वालों भक्तों की संख्या कई गुना बढ़ जाती है।

10. सरसई सरोवर

सरसई सरोवर

सरसई सरोवर कई वजहों से ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण है, यहाँ मौजूद सरोवर लगभग 50 एकड़ में फैला है जिसके चारों तरफ पेड़ों पर चमगादड़ मौजूद रहते है। बड़े-बड़े चमगादड़ों को पेड़ की टहनियों लटके हुए देखा जा सकता है।

स्थानीय लोगों की माने तो यहां चमगादड़ आदिकाल से हैं, और गांववाले चमगादड़ को संकटमोचक मानते है। इस गांव के लोग ना तो चमगादड़ को कोई नुकसान पहुंचाते हैं नहीं किसी को नुकसान पहुंचाने की इजाजत देते हैं।

यहां के लोग चमगादड़ों की पूजा करते हैं। कोई भी मांगलिक कार्य से पहले कुलदेवता के साथ पहले चमगादड़ों की पूजा का रिवाज है।

इसी सरोवर के पास भगवान शिव की एक विशाल मूर्ति भी स्थापित की गई है जो जिलें के लोगों के बीच एक आकर्षण का बड़ा केंद्र बन गया है। हर वर्ष शिवरात्रि पर यहाँ कार्यक्रम का आयोजन भी होता है।

11. राजा विशाल का गढ़

राजा विशाल का गढ़
राजा विशाल का गढ़

लिच्छवी गणराज्य के राजा विशाल ने यहाँ एक किला बनवाया था जो आज बिलकुल खंडहर में तब्दील हो चूका है, करीब 81 एकड़ में फैले इस किले को राजा विशाल का गढ़ कहा जाता है। इसे प्राचीन संसद भवन का अवशेष माना जाता है।

ऐसा माना जाता है कि यह विश्व का सबसे प्राचीनतम संसद है जिसमें लगभग 7000 संघ के सदस्य एक साथ समस्याओं को सुनते थे ,और उस पर बहस और विचार विमर्श भी किया करते थे।

12. विश्व शांति स्तूप

विश्व शांति स्तूप
विश्व शांति स्तूप

वैशाली में  स्थित विश्व शांति स्तूप एक पवित्र स्थान माना गया है, यह एक बेहद ही आकर्षक और दर्शनीय पर्यटक स्थल है। इस स्तूप का निर्माण जापानी बौद्ध के निपोप्‍जंन मयोहोजी सम्‍प्रदाय के द्वारा करवाया था। इस स्तूप की उंचाई लगभग 125 फ़ीट है । इस शांति स्तूप को 23 अक्टूबर 1996 में  शुरू किया गया था, इस स्तूप के व्यास लगभग 65 फ़ीट का है।

शांति का संदेश देता यह स्तूप हर साल हज़ारों लाखों राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक और श्रद्धालुओं का साक्षी बनता है, स्तूप में भगवान बुद्ध के अवशेष के साथ सोने के गहने और कांच का बहुत सारा सामान रखा है।

13. अभिषेक पुष्करणी

शांति स्तूप के बिलकुल बगल में यह प्राचीन सरोवर स्थित है जिसे वैशाली गणराज्य के द्वारा ही खुदवाया गया था, ऐसा माना जाता है कि यह सरोवर लगभग ढाई हजार वर्ष पुराना है ।

कहते है कि वैशाली गणराज्य में जब कोई नया शासक निर्वाचित किया जाता था, तब इसी सरोवर के किनारे पर उस शासक का राज्य अभिषेक कराया जाता था। यही कारण है कि इस स्थान को अभिषेक पुष्कर्णी के नाम से भी जाना जाता है ।

प्राचीन काल के महान लेखक राहुल सांकृत्यायन ने अपने उपन्यास सिंह सेनापति में इस स्थान का बढ़ा चढ़ाकर उल्लेख किया है । यह स्थान बारिश के मौसम में काफी अच्छा दिखता है, और इसी मौसम में इस स्थान को देखने के लिए पर्यटकों का तांता लगा रहता है । अंग्रेजी में इस स्थान को कोरोनेशन टैंक नाम से भी जाना जाता है।

14. बौद्ध अवशेष स्तूप

बौद्ध अवशेष स्तूप
बौद्ध अवशेष स्तूप

बुद्ध अवशेष स्तूप, भगवान बुद्ध के पार्थिव शरीर के आठ भागों में से एक को महापरिनिर्वाण प्राप्त करने के बाद, बौद्धों के लिए सबसे श्रद्धेय स्थलों में से एक है और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के लिए एक संरक्षित स्थल भी है।

बुद्ध अवशेष स्तूप का निर्माण 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में एक मिट्टी के स्तूप के रूप में लिच्छविओं द्वारा किया गया था। बाद में 1958-1962 के दौरान पटना स्थित केपी जयसवाल शोध संस्थान के तत्वावधान में किए गए पुरातात्विक उत्खनन में स्तूप की खोज की गई।

स्तूप के मूल से खुदाई किए गए अवशेष कास्केट में पृथ्वी के साथ मिश्रित भगवान बुद्ध की पवित्र राख, शंख का एक टुकड़ा, मोतियों के टुकड़े, एक पतली सुनहरा पत्ती और एक तांबे के पंच-चिह्नित सिक्का शामिल थे। कास्केट को 1972 में पटना म्यूजियम लाया गया था।

15. वैशाली म्यूजियम

 

16. अशोक स्तम्भ

अशोक स्तम्भ
अशोक स्तम्भ

माना जाता है कि जब सम्राट अशोक कलिंग युद्ध में  विजय के बाद बौद्ध धर्म के अनुयायी बन गए थे तब महात्मा  बुद्ध ने अपना अंतिम उपदेश वैशाली में ही दिया था । यही कारण है कि सम्राट अशोक ने वैशाली नगर में एक स्तंभ बनवाया था जिसे अशोक स्तम्भ के नाम से जाना जाता है ।

सम्राट अशोक ने अपने काल में मूर्तिकला और धार्मिक स्थापत्य को बहुत प्रोत्साहित किया है । साथ ही इन्होंने धार्मिक प्रचार से स्थापत्य कला को भी प्रोत्साहन दिया है । अशोक स्तम्भ  इसी प्रोत्साहन की देन है ।

यह अशोक स्तम्भ अन्य स्थानों के स्तम्भों बिलकुल अलग है, स्तंभ के शीर्ष में  उत्तर दिशा की ओर त्रुटिपूर्ण तरीके से एक शेर की मूर्ति बनी हुई है इस शेर की मूर्ति को भगवान बुद्ध की अंतिम यात्रा की दिशा माना गया है।

इस स्तम्भ के बगल में ईंटों से बना हुआ एक स्तूप और एक तालाब भी स्थित है । इस तालाब को राम कुण्ड के नाम से जाना जाता है। इस तालाब की खोज 1996 में की गयी थी।

17. भगवान महावीर जन्मस्थली

 

यह स्थान जैन धर्म के धर्मावलंबियों के लिए बहुत पवित्र स्थान माना जाता है । इसका कारण यह है कि यहां पर भगवान महावीर का जन्म हुआ था ।

यह स्थान भगवान महावीर की जन्मस्थली के नाम से प्रसिद्ध है ।यह स्थान वैशाली जिले से लगभग 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है , और यहां पर आने वाले बहुत से पर्यटक जैन धर्म से संबंधित या जैन धर्म की धर्मावलंबी होते हैं ।

भगवान महावीर का जन्म ईसा से 599 वर्ष पहले वैशाली गणतंत्र के कुण्डलपुर में इक्ष्वाकु वंश के क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के यहाँ हुआ था। और यहीं उनके कुमार काल के तीस वर्ष व्यतीत हुए थे।

इसी के साथ बहुत अलग-अलग धर्मों के लोग भी यहां की प्राकृतिक सुंदरता को देखने के लिए आते हैं ।

18. चौमुखी महादेव मंदिर

चौमुखी महादेव मंदिर
चौमुखी महादेव मंदिर

वैसे वो देश के अलग अलग हिस्सों में भगवान शिव के यूं तो अनगिनत मंदिर हैं, लेकिन कुछ मंदिरों की अलग ही पहचान है। और वैशाली स्थित यह मंदिर उन्हीं मंदिरों में से एक है।

वैशाली स्थित यह मंदिर चौमुखी (चक्रकार) शिवलिंग वाला देश का इकलौता मंदिर है, मंदिर से जुड़ी मान्यता और रहस्य की वजह से दूसरे देशों के लोग भी यहां दर्शन करने आते हैं।

इस मंदिर को चौमुखी महादेव मंदिर या चतुर्मुखी महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है, मंदिर में ऐसी शिवलिंग स्थापित है जिसके चारों ओर चार हिन्दू देवताओं  ब्रह्मा, विष्णु, शिव और सूर्य के चेहरे देखने को मिलते हैं ।

मंदिर को लेकर मान्यता है कि जब भगवान श्रीराम, लक्ष्मण अपने गुरु विश्वामित्र के साथ जनकपुर जा रहे थे तो तीनों यहां ठहरे थे, तीनों ने चौमुखी महादेव की पूजा भी की थी। लोक कथाओं में ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के समय वणासुर ने कराई थी।

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