बुरहानपुर एक ऐतिहासिक शहर है, जो मध्यप्रदेश के निमाड़ क्षेत्र के अंतर्गत आता है। यह भोपाल से लगभग 340 कि.मी की दूरी पर स्थित यह शहर पवित्र नदी ताप्ति के किनारे बसा है। माना जाता है कि मुगल इस क्षेत्र का इस्तेमाल दक्षिण भारत पर पकड़ बनाने के लिए किया था, हालांकि सपूर्ण दक्षिणी भारत पर कब्जा करने का उनका सपना कभी पूरा न हो सका। मुगल इतिहास के कई महत्वपूर्ण जड़े इस बुरहानपुर से जुड़ी हैं, इसलिए यह शहर ऐतिहासिक रूप से काफी समृद्ध माना जाता है।
बुरहानपुर घूमने की जगह। Places to visit in Burhanpur
असीरगढ़ का किला
सतपुड़ा की पहाड़ियों पर स्थित यह किला मुख्य शहर से लगभग 20 कि.मी के फासले पर है। यहां का पहाड़ी मार्ग सतपुड़ा को नर्मदा घाटी और ताप्ती नदी से जोड़ने का काम करता है। इसकी खास भौगोलिक स्थिति के कारण इसे दक्कन का प्रवेशद्वार भी कहा जाता है। किले की वास्तुकला पर बात करें तो यह काफी हद तक मुगल शैली, तुर्किश, पर्शियन और भारतीय शैली से प्रभावित है।

दरगाह-ए-हकीमी
यहां सैयद अब्दुल कादिर हकीमुद्दीन की कब्र है, जो एक दाऊद बोहरा संत थे। यहां मुस्लिम समाज के लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल है। दरगाह-ए-हकीमी में आपको मस्जिद के साथ एक खूबसूरत बगीचा और यहां आगंतुकों के ठहरने की व्यवस्था भी है। हर साल इस दरगाह पर हज़ारों की तादाम में पर्यटकों का आगमन होता है। दूर से इस्लाल धर्म से जुड़े लोग उनकी कब्र पर मत्था टेकने के लिए आते हैं।

शाही किला
यह एक अद्भुत किला है, जिसकी छत पर आप खूबसूरत बगीचा देख सकते हैं। यहीं शाहजहां की बेगम मुमताज ने अपनी आखरी सांसे ली थी। इस किले का निर्माण फारुख राजवंश के दौरान किया गया था और यहां काफी समय तक शाहजहां का शासन रहा। ऐसा माना जाता है कि सबसे पहले ताजमहल बनाने के लिए बुरहानपुर को ही चुना गया था, लेकिन बाद में कुछ कारणों के कारण इस योजना को रद्ध करना पड़ा। बाद में शाहजहां ने फिर अपनी बेगम मुमताज की याद में आगरा में ताजमहल का निर्माण कराया।

जामा मस्जिद
यह मस्जिद शहर के उत्तर में स्थित है। जिसका निर्माण फारूख शासद के दौरान किया गया था। माना जाता है कि इस मस्जिद का निर्माण कार्य 1590 में शुरु किया गया था, और जिसे पूर्ण रूप से बनने में 5 साल का वक्त लगा।

कुंडा भंडारा
यह मुगल काल के दौरान जलापूर्ति के लिए बनाया गया था। यह प्राचीन इंजीनियरिंग का अद्भुत रूप पेश करती है। जानकारी के अनुसार इसका निर्माण मुगल सूबेदार अब्दुल रहीम खान-ए-खाना द्वारा किया गया था। अतीत से संबंध रखने के कारण यह अब भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग के अंतर्गत संरक्षित है।

मुमताज महल का हमाम
शाही किले का सर्वाधिक अनोखा भाग था हमाम अर्थात् शाही स्नानगृह। इस हमाम की विशेषताएं थीं नीले-हरे रंग में रंगी छत तथा इसकी प्रणाली जो इसे एक उत्तम जल स्त्रोत बनाती है। इस दुर्ग का एक अन्य आकर्षण है इसकी प्राचीर जहां से आप ताप्ती नदी का घाट तथा नदी के उस पार स्थित जैनाबाद देख सकते हैं।

राजा जयसिंह छत्री
यह राजा जयसिंह की छत्री अथवा स्मारक है। बुरहानपुर नगर से थोड़ी दूरी पर तापी नदी एवं मोहना नदी का संगम है। इस इकलौते मंडप में ३२ स्तंभ एवं ५ गुम्बद हैं।

रेणुका देवी मंदिर
बुरहानपुर को घेरते तीन देवी-मंदिर हैं जो आपस में त्रिकोण बनाते हैं। इनमें रेणुका देवी मंदिर बुरहानपुर से सर्वाधिक समीप है तथा मैं केवल इसके ही दर्शन कर पायी। आशादेवी मंदिर जो असीरगढ़ के पास है, इच्छापुरी देवी मंदिर तथा रेणुका देवी मंदिर।

काला ताज महल
यह मकबरा काले ताज महल के नाम से अधिक प्रसिद्ध है। यह अपेक्षाकृत छोटा स्मारक स्थानीय काली शिलाओं से निर्मित है। ऐसा विचित्र दृश्य मैंने इससे पूर्व कहीं नहीं देखा था। इसकी संरचना आगरा के ताज महल से मिलते हुए भी यह भिन्न है। मकबरे के भीतर भित्तिचित्र भी काले रंग में किये गए हैं।

गुरुद्वारा बड़ी-संगत
बुरहानपुर के गुरुद्वारा बड़ी-संगत में गुरु ग्रन्थ साहिब की वह प्रतिलिपि है जिस पर गुरु गोबिंद सिंग ने स्वयं सुनहरी हस्ताक्षर किये हैं। बुरहानपुर के गुरुद्वारा बड़ी-संगत में गुरु ग्रन्थ साहिब की वह प्रतिलिपि है जिस पर गुरु गोबिंद सिंग ने स्वयं सुनहरी हस्ताक्षर किये हैं। यहाँ का लंगर भी अत्यंत विशाल है। आप अनुमान नहीं लगा सकते हैं कि कितने भक्तों को यहाँ प्रसाद रूपी भोजन कराया जाता है।

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