ये राजस्थान का वही स्थान है जहाँ अंग्रेज़ो ने जलियावालां बाग से भी बड़ा हत्याकांड किया था, क्या आपको पता है?

WE and IHANA

जलियावालां बाग हत्याकांड, शायद ही कोई भारतीय हो जिसे इसके बारे में न पता हो। आखिर ये वो घटना थी जिसने हमारे देश के स्वतंत्रता संघर्ष में एक बड़ी भूमिका निभाई थी और इस हत्याकांड के बाद बहुत से आम भारतीय लोगों को स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने की प्रेरणा मिली थी।

लेकिन आज हम आपको एक ऐसी ही अंग्रेज़ो द्वारा किये गए दूसरे हत्याकांड के बारे में बताने जा रहे है जो जलियावालां बाग हत्याकांड से करीब 6 साल पहले हुआ था और इसमें उस जलियांवाला से भी ज्यादा भारतीय लोग शहीद हुए थे

जी हाँ, आपने सही पढ़ा, हम बात कर रहे है गुजरात-राजस्थान सीमा पर स्थित मानगढ़ धाम की जहाँ 1913 में भील जनजाति के करीब 1500 लोगों ने आपने प्राणो का बलिदान दिया था। तो चलिए बताते हैं आपको हमारी मानगढ़ धाम की यात्रा के बारे में…..

हम थे हमारी बांसवाड़ा की यात्रा पर और इसी बीच हमें पता लगा इस अद्भुत पावन भूमि मानगढ़ के बारे में की यहाँ 17 नवंबर 1913 को अंग्रेज़ो ने इतना बड़ा नरसंहार किया था तो यहाँ का इतिहास जानकार हमने तुरंत वहां जाने का सोचा।

ये पवित्र स्थान बांसवाड़ा शहर से करीब 70 किलोमीटर दूर है और यहाँ जाने का रास्ता अधिकतर हाईवे से होकर ही जाता है तो यहाँ आप आसानी से पहुँच जायेंगे। मानगढ़ पहाड़ी हमें करीब 5 किलोमीटर दूर से दिखने लगी और साथ में वहां बना स्मारक भी हमें कुछ कुछ दिख रहा था।

अंत में कुछ चढ़ाई चढ़कर हमें पता लगा की ये जगह राजस्थान और गुजरात की सीमा पर है और फिर हम ऊपर स्मारक के पास पहुँच गए। यहाँ से यह स्मारक और यह जगह काफी खूबसूरत दिख रही थी। यहाँ जाने का कोई टिकट नहीं है तो हम कार पार्क करके अंदर स्मारक की और चले गए।

यहाँ हमें कुछ टूरिस्ट दिखे जो इस पहाड़ी के टॉप पर चलती हवा का आनंद ले रहे थे और साथ में सेल्फी और अन्य फोटोज क्लिक कर रहे थे।

राजस्थान सरकार द्वारा वर्ष 2002 में यहाँ ये शहीद स्मारक बनवाया गया था और हमें अच्छा लगा की देर से ही सही लेकिन प्रशासन ने उन शहीदों के बलिदान को महत्त्व देकर यहाँ इस स्मारक का निर्माण करवाया।


ऊपर से चारों ओर का नज़ारा सच में बेहद खूबसूरत था और यहाँ आप तेज़ चलती ताज़ी हवा और इन खूबसूरत नज़ारों के साथ कुछ घंटे आराम से सुकून में बिता सकते हैं। हमने भी वहां कुछ पल शांति में बिताये और साथ में कुछ पलों को फोटोज में सेव भी किया।

यहाँ के हेलिपैड भी मौजूद है और साथ ही में कुछ व्यू पॉइंट्स भी बनाये गए है जहाँ आप बैठकर इस ऊँची पहाड़ी से नीचे की ओर का खूबसूरत नज़ारा देख सकते हैं। 

मानगढ़ धाम का इतिहास:

वर्ष 1903 में गोविन्द गुरु, जो की एक सामाजिक कार्यकर्ता थे और आदिवासियों को जाग्रत करने का काम करते थे, ने मानगढ़ की पहाड़ी को अपना नया ठिकाना चुना और यहाँ से अपने आंदोलन और अन्य सामाजिक कार्यों को जारी रखा। और ऐसे ही एक दिन 17 नवंबर,1913 को एक वार्षिक मेले का आयोजन हो रहा था।

गोविन्द गुरु के साथ हज़ारों वनवासी उस समय पड़े अकाल के बाद अंग्रेज़ों से कर घटाने , कुछ धार्मिक परम्पराओं को निभाने आदि जैसी मांगो के लिए यहाँ एकजुट हुए थे। ब्रिटिश सेना ने उनकी मांगो पर विचार करने की बजाय उन पर न सिर्फ बंदूकों से बल्कि मशीनगन और यहाँ तक की तोपों से भी इन आदिवासियों को मारने का आदेश दिया। और फिर इस फायरिंग में हज़ारों आदिवासी लोग शहीद हुए। 

आज अलग अलग किताबों में यहाँ हुए शहीदों की संख्या 1500 से 2000 के बीच बताई जाती है। और कहा जाता है की इस घंटना के बाद ब्रिटिश सेना ने गोविन्द गुरु को गिरफ्तार भी कर लिया और उन्हें फांसी की सजा सुनाई गयी। हालाँकि बाद में अदालत ने उनकी सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया था।

तो अगर आप बांसवाड़ा या उदयपुर शहर के पास हैं तो हम आपको इस स्थान पर जाने और यहाँ शहीदों को श्रद्धांजलि देने का सुझाव जरूर देंगे।

आप अगर इस स्थान के बारे में अधिक जानकारी चाहते हैं या फिर ऐसी ही कई और छिपी हुई जगहों के बारे में जानना चाहते हैं तो आप नीचे दिए गए हमारे Youtube चैनल WE and IHANA की लिंक पर क्लिक करके हमारे वीडियो देख सकते हैं ।

https://youtube.com/c/WEandIHANA

यहाँ कैसे पहुंचे ?

राजस्थान के किसी भी शहर से आप बांसवाड़ा आसानी से पहुँच सकते हैं। उदयपुर से बांसवाड़ा करीब 150 किलोमीटर दूर हैं और बांसवाड़ा से मानगढ़ धाम करीब 70 किलोमीटर दूर हैं जिसके लिए आप टैक्सी ले सकते हैं। अगर आप गुजरात के अहमदाबाद की और से आ रहे हैं तो मानगढ़ धाम अहमदाबाद से करीब 190 किलोमीटर की दूरी पर है।

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