मध्यप्रदेश के सतना जिले में पवित्र माँ शारदा मंदिर स्थित है जिसे दूर दर्ज से लोगों देखने और दर्शन करने आते है, सतना जिले के मैहर ग्राम में स्थित शारदा मंदिर जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर की दुरी पर है जो की त्रिचूट पर्वत पर 600 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।
स्थानीय लोग मैहर माता को माई कहते है, मुख्य तीर्थस्थल तक पहुंचने के लिए कुल 1006 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है। तो आइये एक एक करके मैहर स्थित माँ शारदा मंदिर की यात्रा से जुड़े बातों को जानते है।
क्यों खास है माता का मंदिर?
शारदा माता मंदिर एक प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ स्थल है, यह स्थल सतयुग के प्रमुख अवतार नृसिंह भगवान के नाम पर ‘नरसिंह पीठ’ के नाम से भी विख्यात है। ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर आल्हखण्ड के नायक आल्हा व ऊदल दोनों भाई मां शारदा के अनन्य उपासक थे और आज भी पर्वत की तलहटी में आल्हा का तालाब व अखाड़ा विद्यमान है।
इस स्थान पर हर रोज हज़ारों श्रद्धालु तथा पर्यटक दर्शन को आते है परन्तु वर्ष में दोनों नवरात्रों में यहां खास मेला लगता है। मां शारदा के बगल में प्रतिष्ठापित नरसिंहदेव जी की पाषाण मूर्ति आज से लगभग 1500 वर्ष पूर्व की है।
पूरे भारत में सतना का मैहर मंदिर माता शारदा (Maihar Mata Sharda Mandir) का एकमात्र मंदिर है, इसी पर्वत की चोटी पर माता के साथ ही श्री काल भैरवी, भगवान, हनुमान जी, देवी काली, दुर्गा, श्री गौरी शंकर, शेष नाग, फूलमति माता, ब्रह्म देव और जलापा देवी की भी पूजा की जाती है।

नाम के पीछे की कहानी
पौराणिक कथाओं में जो वर्णित है उस हिसाब से इस स्थान पर माता का हार गिरा था और इसी वजह से इस स्थान का नाम मैहर पड़ा।
घूमने का सबसे बेस्ट टाइम
वैसे तो पुरे साल भर माता के द्वार लोगों का आना जाना लगा रहता है लेकिन खासतौर से नवरात्री में यहाँ मेला लगता है जिसे देखने लाखों की संख्या में लोग पहुंचते है।
दर्शन का समय
रात्रि के आठ बजे अंतिम आरती के बाद पुरे कैंपस में ताला लगा दिया जाता है।
माँ शारदा माता मंदिर का दर्शन
रोपवे से सीधे पहुंचे माता के द्वार
मैहर में माता का मंदिर काफी ऊंचाई पर पहाड़ पर स्थित है और वहां पहुंचने के लिए 1006 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है ऐसे में आप चाहे तो सीधे रोपवे के माध्यम से भी माता के द्वार तक पहुंच सकते है हालाँकि यह रोपवे मुफ्त नहीं है।
टिकट दर की बात करें तो वयस्कों के लिए 118 रूपए जबकि 3 से 10 साल के बीच के बच्चों के लिए 71 रूपए की टिकट है।
रोपवे का सफर काफी अच्छा अनुभव देता है हालाँकि सीढ़ियां चढ़ने का भी एक अलग ही मजा है। रोपवे से जब आप ऊपर जायेंगे आपको पूरा मैहर शहर दिखेगा
द्वारपाल के रूप में काल – भैरव का मंदिर
शारदा माता के मंदिर की सीढ़ियों के ठीक बगल में ही विराजमान है काल – भैरव, जी हाँ माता के द्वारपाल के रूप में। लोग सबसे पहले इनका दर्शन करते है फिर आगे बढ़ते है।
भंडारे में जरूर करें भोजन
दूर दर्ज से आने वाले लोगों के लिए यहाँ दो भंडारा चलाया जाता है, पहला है शारदा अन्नकूट के नाम से जहाँ आपको केवल 15 रूपए के टोकन में भरपेट भोजन मिलता है दूसरा है मैहर ट्रस्ट का भंडारा जहाँ आपको 10 रूपए का टोकन लेना होता है।
पहले भंडारे में अपेक्षाकृत बेहतर सुविधाएँ है, शारदा अन्नकूट रोपवे के गेट के ठीक बगल में ही है। यह शनिवार को बंद रहता है बाकि दिन दोपहर 11 बजे से 2 बजे तक आप लजीज व्यनजनों का आनंद उठा पाएंगे।
आल्हा और उदल करते है पहला दर्शन
कहानियों में ऐसा वर्णित है कि पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध लड़ने वाले दो वीर भाई आल्हा और उदल शारदा माता के सबसे बड़े भक्त थे, इन्ही दोनों भाइयों ने जंगलों के बीच शारदा देवी के इस मंदिर की खोज की थी।
इसी मंदिर में आल्हा ने पुरे 12 साल तक तप किया जिसके फलस्वरूप माता ने उन्हें अमरत्व का आशीर्वाद दिया था। मान्यता है कि माता शारदा के दर्शन सर्वप्रथम आल्हा और उदल ही करते हैं।
आल्हा तालाब और अखाड़ा
मंदिर के पीछे पहाड़ों के नीचे एक तालाब है जिसे आल्हा तालाब कहा जाता है, मान्यता है कि इसी आल्हा सरोवर में वे सुबह सवेरे स्नान करके पैदल माता के मंदिर दर्शन करने जाते थे। अभी के वक्त में सरोवर में काफी कमल के फूल खिले हुए है जिसे देखन मन प्रसन्न हो जाता है।
इस तालाब से करीब दो किलोमीटर आगे बढ़ने पर एक अखाड़ा है। इस आखाड़े के बारे में कहा जाता है कि यहाँ दोनों भाई आल्हा और उदल कुश्ती लड़ा करते थे।
धार्मिक मान्यता
माता के मंदिर की उत्पत्ति के पीछे एक बहुत ही प्राचीन पौराणिक कथा प्रसिद्ध है, कहते है कि सम्राट दक्ष की पुत्री सती, भगवान शिव से ब्याह करना चाहती थी, परंतु राजा दक्ष शिव को भगवान नहीं, भूतों और अघोरियों का साथी मानते थे और इस विवाह के वह विरोधी थे। सती ने पिता के विरुद्ध जाकर भगवन शिव से विवाह कर लिया।
कहानी आगे बढ़ती है और राजा दक्ष ‘बृहस्पति सर्व’ यज्ञ करते है, इस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र समेत सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया जाता है लेकिन शिव को बुलावा नहीं भेजा जाता है।महादेव की पत्नी और दक्ष की पुत्री सती इससे बहुत दुखी होती है और
अपने पिता दक्ष से इसका कारण पूछती है। जवाब में राजा दक्ष शिव को लेकर अपशब्द कहते है जिससे सती को क्रोध आता है और वह यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपनी जान दे देती है। भगवन शिव को जब इस घटना के बारे में पता चलता है तो क्रोध से उनका त्रिनेत्र खुल जाता है। यज्ञ का नाश हो जाता है और शिव अपने सती के पार्थिव शरीर को कंधे पर उठा कर गुस्से में तांडव करने लगते है।
शिव के तांडव से पुरे ब्रह्मांड पर खतरा मंडराने लगा और फिर सृष्टि की भलाई के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को 52 भागों में बांट दिया। जहां-जहां सती के अंग गिरे वहां शक्तिपीठों बन गए। ऐसी मान्यता है कि यहीं माता का हार गिरा था। हालांकि, सतना का ये मैहर मंदिर शक्ति पीठ तो नहीं है। लेकिन लोगों की आस्था इस कदर है कि यहां सालों से माता के दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ लगी रहती है।
मैहर कैसे पहुंचें
वायु मार्ग
मैहर तक पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा, जबलपुर, खजुराहो और इलाहाबाद है। इन हवाई अड्डों से आप ट्रेन, बस या टैक्सी से आसानी से मैहर तक पहुंच सकते हैं। जबलपुर से मैहर दूरी 150 किलोमीटर खजुराहो से मैहर दूरी 130 किलोमीटर इलाहाबाद से मैहर दूरी 200 किलोमीटर
ट्रेन द्वारा
आम तौर पर सभी ट्रेनों में मैहर स्टेशन पर रोक नहीं होती है, लेकिन नवरात्र उत्सवों के दौरान ज्यादातर ट्रेनें मैहर पर रुकती हैं। सभी ट्रेनों के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन जंक्शन – सतना स्टेशन से मैहर स्टेशन की दूरी 36 किलोमीटर है मैहर स्टेशन से कटनी स्टेशन की दूरी 55 किलोमीटर है
सड़क मार्ग
मैहर शहर अच्छी तरह से राष्ट्रीय राजमार्ग 7 के साथ सड़क से जुड़ा हुआ है . आप आसानी से निकटतम प्रमुख शहरों से मैहर शहर के लिये नियमित बसें पा सकते हैं।
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