चम्पावत में घूमने की जगह। Places to visit in Champawat

पुराने महल व किले के अवशेष आज भी यहा पर मौजूद है। जिनकी भव्यता व बनावट देखते ही बनती है। चम्पावत की घाटी भी बेहद सुंदर है। लोहाघाट से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर बसा यह नगर पूर्व में चंदवंशीय राजाओ की राजधानी था।इन मंदिरो में विशेषतया बालेश्वर व नागनाथ मंदिर आकर्षण का मुख्य केन्द्र है।

चम्पावत में घूमने की जगह। Places to visit in Champawat


 

लोहाघाट

लोहाघाट लोहवाती नदी के किनारे स्थित है तथा ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व का केंद्र है। गर्मियों के मौसम में लोहाघाट बुरांस के फूलों से भरा हुआ रहता है। पिथोरागढ़ से टनकपुर के रास्ते पर और चंपावत जिला मुख्यालय से 14 किमी दूर है।

लोहाघाट

पूर्णागिरि मंदिर

चंपावत जिले से 72 किलोमीटर दूर  भारत और नेपाल बॉडर में स्तिथ यह मंदिर देवी महाकाली का मंदिर है यह ऊंची पहाड़ी में बना हुआ है यहां जून के महीने में मेला भी लगता है पूर्णागिरी मंदिर में पूरे देश भर से लाखो भक्तों की भीड़ यहां आती है  ,  पूर्णागिरी जिसे पुण्यगिरि भी कहा जाता है पूर्णागिरी से काली नदी मैदानों में उतरती है और इसे शारदा नाम से जाना जाता है।

पूर्णागिरि

 

गोलू देवता

चंपावत जिले  में स्तिथ यह  मंदिर न्याय के देवता के रूप में पूजा जाता है लोग यहां आके अपनी इच्छा एक कागज के पन्ने में लिख के टांग जाते है  माना जाता है कि जब भी संपर्क किया जाता है  तो ग्वाल देवता अन्याय और क्रूरता के असहाय शिकार व्यक्ति को न्याय प्रदान करते हैं। एक नदी में लोहे के पिंजरे में बंद कर फेंका गया  । न्याय के उच्च सम्मान के  प्रतीक के रूप में  में, एक मंदिर उसने  चंपावत में ग्वाल चौराहे में समर्पित किया गया था।

ग्वाल देवता

 

बालेश्वर मंदिर

1272 में चंद्र राजाओ ने इस मंदिर का निर्माण किया इन मंदिरों पर जटिल नक्काशी दिखाई देती है जो कि उनकी प्राचीन महिमा और कलात्मक उत्कृष्टता का सबूत है।  बालेश्वर, पिथोरागढ़  से 76 किलोमीटर की दूरी पर, चंपावत में स्थित जिले का सबसे कलात्मक मंदिर है।

बालेश्वर मंदिर

 

गुरुद्वारा रीठा साहिब

चंपावत से 72 किलोमीटर दूर चारो तरफ पहाड़ो से घिरा हुआ नदी के किनारे स्तिथ गुरुद्वारा कहा जाता है गुरु नानक देव जी जब यहां आये थे खाने के लिए उन्होंने रीठा लिया उनकी शक्तियो से यह रीठा मीठा हो गया यहां पर देश बिदेशो से कई लोग आते है बैसाखी पूर्णिमा के दिन यहां पर बहुत बड़ा मेला लगता है   यहां पर गुरु नानक देव का नाथ योगी के साथ संवाद हुआ, जिसे उन्होंने सक्रिय मानवतावादी सेवा को रास्ते में लाने की कोशिश की और साथ में भगवान का नाम स्मरण भी करवाया।

गुरुद्वारा रीठा साहिब

 

आदित्य महादेव  मंदिर

लोहाघाट से 5 किलोमीटर की दुरी सुई गाँव में स्तिथ यह मंदिर यह पे सूर्य देवता के साथ साथ भगवान शिव की भी पूजा की जाती है   यह भगवान सूर्य के कुछ प्रसिद्ध एवं दुर्लभ मंदिरों में से एक है। ऐसा भी माना जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडवो ने यहाँ आकार भगवान शिव का पूजन किया था और शिवलिंग की स्थापना की थी। यह‘शिवादित्यमंदिर’के नाम से भी विख्यात है।

आदित्य मंदिर

 

पंचेश्वर महादेव

यह चंपावत से 52 किलोमीटर की दुरी पर है यहां पर पांच नदीओ का संगम है तभी इसका नाम पंचेश्वर पड़ गया यहाँ  पर उत्तरायणी के समय बिसाल मेला लगता है यह  मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इसे चंमू ईस्ट देवता के नाम से भी जाना जाता है इस मंदिर के बारे में लोगो का कहना है की भगवान शिव ने आस पास के गावो के पसुवो की रक्षा की है इसलिए उन्हें जानवरों के रक्षक के रूप में भी पूजा की जाता  है। पंचेश्वर के चौमु जात की  सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का अनूठा तरीका है। पंचेश्वर के मंदिर में घंटी और दूध  चढ़ाया जाता है।

पंचेश्वर

 

एबॉट माउंट

यह चंपावत से 19 किलोमीटर की दुरी पर है यहां से आप हिमालय का व्यू आप देख सकते है इसकी ऊचाई 2200 मीटर है यह वह जगह है जहां आप किसी भी यातायात या शोर के बिना जंगल के बीच शांति से घूम सकते  हैं और खूबसूरत सूर्यास्त देख सकते हैं। यहां 13 कॉटेज बनाए और उनमें से कुछ अभी भी हैं।

एबॉट माउंट

 

बाणासुर का किला

यह चंपावत से 17 किलोमीटर और लोहाघाट से 7 किलोमीटर की दुरी कर्णरायत नामक स्थान में स्तिथ है इस किले का निर्माण बाणासुर नामक राक्षसने किया था कहा जाता है की इस स्थान में भगवान श्री कृष्ण ने बाणासुर का वध किया था  आस पास के लोगो का कहना है की यहां से सुवर्ग को सीढिया जाती है

बाणासुर किला
बाणासुर किला

माँ बाराही मंदिर

यह चंपावत से 57 किलोमीटर की दुरी में स्तिथ है यह मंदिर अपनी परम्परा बग्वाल के लिए काफी प्रसिद्ध है बग्वाल को चार खम्बो के बीच फल और फूल तथा पत्थर बरसाने के लिए होता है जिसमे बग्वाल खेलने वाले योद्धा छत्र ढाल से अपनी रक्षा कर दूसरे योद्धाओ पर फल और पत्थर डालते है बग्वाल का आयोजन प्रत्येक साल रक्षाबंधन को होता है यहाँ पे एक गुफा भी स्तिथ है

 

 

माँ बाराही मंदिर
माँ बाराही मंदिर